धर्म-संस्कृति

जागर में झलकती हैं देवभूमि की संस्कृति 

उत्तराखंड की जान कही जाने वाली जागर विधा विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी है। जागरियों की लगातार हो रही उपेक्षा कहीं न कहीं इसका कारण रहा है। सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही ये विधा हमारे इतिहास का एक मौखिक दस्तावेज हैं।

हमारु अपणु उत्तराखंड ब्यूरो, देहरादून। जैसा कि हम जानते हैं कि संस्कृति को समृद्ध बनाने के लिए छोटी-छोटी लेकिन महत्वपूर्ण विधाओं का बड़ा योगदान होता है। यह योगदान एक कड़ी के रूप में होता है। जैसे-जैसे कड़ी बढ़ती जाती है, संस्कृति उतनी ही मजबूत हो जाती है। आज उत्तराखंड की जान कही जाने वाली जागर विधा विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुकी है। जागरियों की लगातार हो रही उपेक्षा कहीं न कहीं इसका कारण रहा है। सदियों से पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही ये विधा हमारे इतिहास का एक मौखिक दस्तावेज हैं। बीते कुछ वर्षों से पहाड़ पर जागरियों का अकाल सा पड़ गया है। नई पीढ़ी के युवा इस विधा को अपनाने में खुद को हास्य का पात्र या अपमानित महसूस कर रहे हैं और दूर भाग रहे हैं। हमारे समृद्ध इतिहास के इन दस्तावेजों के प्रति सरकार का उदासीन रवैया यह दर्शाता है कि वह पहाड़ी संस्कृति के प्रति कितना संजीदा है।

संस्कृति और परंपराओं की बात करें तो उत्तराखंड अतुलनीय है। यहां के रीति-रिवाज, परंपराएं, संस्कृति हर किसी का मन मोह लेती हैं। संस्कृति के विविध रंगों में एक है यहां की ‘जागर’। गढ़वाल और कुंमाऊं दोनों मंडलों में अलग-अलग देवी देवताओं को जागर के माध्यम से प्रसन्न किया जाता है। उत्तराखंड में नाग देवता, नर्सिंग, निरंकार देवी, भगवती आदि लोक देवता हैं और जब पूजा के रूप में इन देवताओं की गाथाओं का गान किया जाता है उसे जागर कहते हैं। जागर का अर्थ है ‘जगाने वाला’ और जिस व्यक्ति द्वारा इन देवताओं की शक्तियों को जगाया जाता है उसे ‘जगरिया’ कहते हैं। इसी जगरिये के द्वारा ईश्वरीय बोल बोले जाते हैं। जागर उस व्यक्ति के घर पर करते हैं जो किसी देवी-देवता के लिये जागर करवा रहा हो।

जागर देवताओं के गीतों में विनसर, नागर्जा, नरसिंह, भैरों, ऐड़ी, आछरी, जीतू, लाटू, भगवती, चण्डिका, गालू देवता पाण्डवों, कत्येर, गोलू, हरज्यू, सैम, नृसिंह, भोलनाथ, गंगनाथ आदि मुख्य हैं। इष्ट देवताओं को स्थानीय भाषा में ग्राम देवता कहा जाता है। ग्राम देवता का अर्थ गांव का देवता है। पहाड़ी ग्रामीण अंचलों में आज भी लोग दु:ख, बीमारी आदि की स्थिति में अपने घर अथवा मन्दिर घर में देवताओं को जगाने हेतु जागर लगवाकर अपने इष्ट से मनौती मांगते है। घर के आंगन में घूनी जलाई जाती है।

जागर बाइसी तथा चौरास दो प्रकार के होते हैं. बाइसी बाईस दिनों तक जागर किया जाता है। चौरास मुख्यतया चौदह दिन तक चलता है. जागर का आयोजन सामान्यतया रात्रि में ही होता है। जागर में जगरीया मुख्य पात्र होता है । जगरीया हुड्का (हुडुक), ढोल तथा दमाउ बजाते हुए कहानी लगाता है । जगरिया के साथ मे दो तीन सहायक भी रहते हैं जो जगरीया के साथ जागर गाते हैं और कांसे की थाली को नगडे की तरह बजाते हैँ । गांव में ही देवता का प्रतीक कोई आदमी होता है, उसे डंगरिया कहा जाता है। डंगरिये के शरीर में कम्पन होता है। वह जो भी बोलता है, उसे देवता का बोल माना जाता है। देवताओं की आत्मा के किसी पवित्र शरीर के माध्यम से कुछ समय के लिए अवतरित होने की इसी प्रक्रिया को कहा जाता है- जागर।

पहाड़ी ग्रामीण अंचलों के गांवों में अभी भी काफी लोग इस परम्परा पर विश्वास करते हैं। जागर में जगरिया की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। जगरिया को ही डौंर-थाली आदि वाद्य यंत्रों की सहायता से देवताओं का आह्वान करना होता है। जगरिया देवताओं का आह्वान किसी व्यक्ति विशेष के शरीर में करता है। जागर का आयोजन ज्यादातर चैत्र, आसाढ़, मार्गशीर्ष महीनों में किया जाता है।

नरसिंग जागर
आम तौर पर नरसिंग भगवान को विश्णु अवतार माना जाता है। नर्सिंग भगवान गुरु गोरखनाथ के चेले के रूप में ही पूजे जाते हैं . नर्सिंगावली मन्त्रों के रूप में भी प्रयोग होता है और घड़ेलों में  जागर के  रूप में भी प्रयोग होता है. इस लेखक ने एक नरसिंग घडला में लालमणि उनियाल , खंडूडिय़ों का जिक्र भी सूना था।

नरसिंग नौ हैं
इंगला वीर, पिंगला बीर , जतीबीर, थतीबीर, घोरबीर, अघोरबीर, चंड बीर , प्रचंड बीर , दुधिया व डौंडिया    नरसिंग

आमतौर पर दुधिया नरसिंग व डौंडिया   नरसिंग के जागर लगते हैं . दुधिया नरसिंग शांत नरसिंघ माने जाते है जिनकी पूजा रोट काटने से पूरी हो जाती है जब कि डौंडिया नरसिंग घोर बीर माने जाते हैं व इनकी पूजा में भेड़ बकरी का बलिदान की प्रथा भी है।

गढ़वाली जागर
जाग जाग नरसिंग बीर बाबा
रूपा को तेरा सोंटा जाग , फटिन्गु को तेरा मुद्रा जाग .
डिमरी रसोया जाग , केदारी रौल   जाग
नेपाली तेरी चिमटा जाग , खरुवा की तेरी झोली जाग
तामा की पतरी जाग , सतमुख तेरो शंख जाग
नौलड्या चाबुक जाग , उर्दमुख्या तेरी नाद जाग
गुरु गोरखनाथ का चेला जाग
पिता भस्मासुर माता महाकाली जाग
लोह खम्भ जाग रतो होई जाई बीर बाबा नरसिंग
बीर तुम खेला हिंडोला बीर उच्चा कविलासू
हे बाबा तुम मारा झकोरा , अब औंद भुवन मा
हे बीर तीन लोक प्रिथी सातों समुंदर मा बाबा
हिंडोलो घुमद घुमद चढे बैकुंठ सभाई , इंद्र सभाई
तब देवता जागदा ह्वेगें , लौन्दन फूल किन्नरी
शिवजी की सभाई , पेंदन भांग कटोरी
सुलपा को रौण  पेंदन राठवळी भंग
तब लगया भांग को झकोरा
तब जांद बाबा कविलास गुफा
जांद तब गोरख सभाई , बैकुंठ सभाई

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button